2028 की तैयारी में ‘राजनीति का जादूगर’? जोधपुर से फिर शुरू हुआ अशोक गहलोत का सफर
राजस्थान की राजनीति में कुछ चेहरे ऐसे हैं, जो सत्ता में रहें या विपक्ष में – उनकी मौजूदगी ही सियासी तराजू को झुका देती है। अशोक गहलोत ऐसा ही एक नाम है। कांग्रेस के ‘चाणक्य’ और ‘राजनीति के जादूगर’ के तौर पर पहचान बना चुके गहलोत अब एक बार फिर सुर्खियों में हैं

जोधपुर,राजस्थान : राजस्थान की राजनीति में कुछ चेहरे ऐसे हैं, जो सत्ता में रहें या विपक्ष में – उनकी मौजूदगी ही सियासी तराजू को झुका देती है। अशोक गहलोत ऐसा ही एक नाम है। कांग्रेस के ‘चाणक्य’ और ‘राजनीति के जादूगर’ के तौर पर पहचान बना चुके गहलोत अब एक बार फिर सुर्खियों में हैं – इस बार अपने जोधपुर दौरे को लेकर। उनके इस दौरे ने एक बार फिर 2028 के विधानसभा चुनावों को लेकर अटकलों का बाजार गर्म कर दिया है।
क्या चौथी बार की तैयारी शुरू?
तीन बार मुख्यमंत्री रह चुके अशोक गहलोत जब कल रात से चार दिन के दौरे पर अपने गृह नगर जोधपुर पहुंचे, तो मानो सियासी तापमान चढ़ गया। कार्यकर्ताओं की भीड़, समर्थन का सैलाब और जनता का विश्वास – इन सबने एक बार फिर ये सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या गहलोत 2028 की विधानसभा चुनावों के लिए अभी से मैदान में उतर चुके हैं? उनका यह दौरा, जिसे सामान्यतः व्यक्तिगत माना जा रहा था, अब राजनीतिक गलियारों में बड़े संकेतों के रूप में देखा जा रहा है।
राजनीति के पचास साल: एक युग की स्थापना
अशोक गहलोत ने राजनीति में अपने 50 साल पूरे कर लिए हैं। इस दौरान उन्होंने – पाँच बार सांसद, तीन बार केंद्र में मंत्री, तीन बार कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष, दो बार कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव, पाँच बार विधायक और तीन बार मुख्यमंत्री जैसे मुकाम हासिल किए हैं। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि राजस्थान में "अशोक गहलोत युग" बीते दशकों की राजनीति का एक स्थायी हिस्सा बन चुका है। उनकी लंबी राजनीतिक यात्रा अनुभव, दूरदर्शिता और जनसंपर्क का बेजोड़ संगम है।
जाति समीकरणों से परे, सर्वमान्य नेता
राजनीतिक तौर पर माली समाज से आने वाले गहलोत ने एक ऐसी सामाजिक पृष्ठभूमि से उठकर नेतृत्व किया, जिसकी व्यापक जनमान्यता राजस्थान की पारंपरिक जातीय राजनीति में दुर्लभ रही है। क्षत्रिय, जाट, ब्राह्मण जैसे प्रभावशाली वर्गों के बीच उन्होंने वंचित और शोषित वर्गों की आवाज बनकर अपने लिए अलग जगह बनाई। उनकी सोच में समावेशिता है – यही वजह है कि वो हर वर्ग और समुदाय को साथ लेकर चलते हैं, और यही सोच उन्हें जननेता बनाती है। उनकी यह खूबी उन्हें अन्य नेताओं से अलग करती है और उन्हें एक व्यापक जनाधार देती है।
राजनीति की रणनीति: विरोधियों की चाल उन्हीं पर भारी
गहलोत की राजनीति को समझना आसान नहीं। उनके फैसले शांत दिखते हैं, पर उनका असर तूफानी होता है। 1998 में 153 सीटों के बहुमत के बाद पहली बार सीएम बने अशोक गहलोत ने 2008 और 2018 में भी सत्ता में वापसी की। लेकिन ये रास्ता सीधा नहीं था – विरोधियों के साथ-साथ पार्टी के अंदर भी चुनौतियाँ रहीं। 2020 का पायलट प्रकरण इसकी सबसे बड़ी मिसाल है, जहां उनकी राजनीतिक सूझबूझ और पकड़ ने सरकार को संकट से बचा लिया। यह घटना उनकी राजनीतिक चातुर्य का प्रमाण है, जिसने उन्हें 'जादूगर' का खिताब दिलाया।
जोधपुर दौरा: संकेत या संकल्प?
गहलोत का जोधपुर दौरा केवल एक व्यक्तिगत यात्रा नहीं लगती। यह उस सियासी सफर की नई शुरुआत हो सकती है, जिसका अगला पड़ाव 2028 है। 74 की उम्र पार कर चुके गहलोत जब लोगों के बीच जाते हैं तो उनकी ऊर्जा, उनकी अपील और जनता से जुड़ाव फिर से उन्हें ‘युवा नेता’ बना देता है। जोधपुर में उमड़ती भीड़ इस बात की गवाही देती है कि "अबकी बार फिर गहलोत सरकार" का नारा शायद फिर से गूंजने को तैयार है।
अशोक गहलोत की राजनीति एक जादू है – जो कभी खत्म नहीं होता, सिर्फ नई शक्ल में लौट आता है। 2028 की राह अभी दूर है, पर राजनीति के इस अनुभवी जादूगर ने शायद अपनी चौथी पारी की बिसात बिछानी शुरू कर दी है। जोधपुर की गूंज आने वाले चुनावों की शुरुआत भी हो सकती है और कांग्रेस के लिए गहलोत एक बार फिर संकटमोचक भी साबित हो सकते हैं।