बिहार चुनाव से पहले बड़ा दांव: अगड़ी जातियों के लिए आयोग का पुनर्गठन, महाचंद्र प्रसाद सिंह बने चेयरमैन
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों दो दिवसीय बिहार दौरे पर हैं। इस दौरे के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जनता दल (यूनाइटेड) (JDU) के नेतृत्व वाला सत्तारूढ़ NDA गठबंधन राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार की शुरुआत कर चुका है। इसी बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बड़ा राजनीतिक कदम उठाते हुए उच्च जातियों (सवर्णों) के लिए आयोग के पुनर्गठन की घोषणा की है।

पटना – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इन दिनों दो दिवसीय बिहार दौरे पर हैं। इस दौरे के साथ ही भारतीय जनता पार्टी (BJP) और जनता दल (यूनाइटेड) (JDU) के नेतृत्व वाला सत्तारूढ़ NDA गठबंधन राज्य में आगामी विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार की शुरुआत कर चुका है। इसी बीच मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बड़ा राजनीतिक कदम उठाते हुए उच्च जातियों (सवर्णों) के लिए आयोग के पुनर्गठन की घोषणा की है।
सवर्ण आयोग का पुनर्गठन: जातिगत संतुलन साधने की कोशिश
बिहार में जातिगत राजनीति का हमेशा से बड़ा असर रहा है। विपक्ष लगातार जातिगत जनगणना की मांग करता रहा है, लेकिन अब केंद्र सरकार पहले ही अगली जनगणना के साथ जातिगत गणना का ऐलान कर चुकी है। इसके बाद अब सरकार ने सवर्ण समाज को साधने की रणनीति पर काम शुरू कर दिया है।
राज्य सरकार ने सवर्ण विकास आयोग का पुनर्गठन करते हुए BJP नेता महाचंद्र प्रसाद सिंह को आयोग का चेयरमैन और JDU नेता राजीव रंजन प्रसाद को वाइस चेयरमैन नियुक्त किया है। इनका कार्यकाल तीन साल का होगा।
आयोग में अन्य सदस्य भी नियुक्त
नए सवर्ण आयोग में तीन अन्य सदस्यों को भी मनोनीत किया गया है:
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दयानंद राय
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राजकुमार सिंह (भागलपुर)
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जयकृष्ण झा (पटना)
इसके साथ ही शैलेंद्र कुमार को अनुसूचित जाति आयोग का और गुलाम रसूल बलियावी को अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है। बलियावी वही नेता हैं जिन्होंने वक्फ संशोधन बिल का मुखर विरोध किया था।
महाचंद्र प्रसाद सिंह कौन हैं?
महाचंद्र प्रसाद सिंह पहले HAM (सेक्युलर) पार्टी के सदस्य थे, जो जीतनराम मांझी की पार्टी है। बाद में उन्होंने खुद की पार्टी बनाई और वर्ष 2019 में BJP में शामिल हो गए। वे बिहार सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं और अब एक बार फिर मुख्यधारा की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं।
चुनावी रणनीति का हिस्सा है यह निर्णय?
राजनीतिक जानकारों का मानना है कि यह निर्णय स्पष्ट रूप से चुनावी रणनीति का हिस्सा है, ताकि हर जातीय वर्ग को प्रतिनिधित्व दिया जा सके। एक ओर पिछड़ी जातियों के लिए जनगणना की घोषणा हो चुकी है, वहीं अब सवर्ण समाज को भी संगठनात्मक प्रतिनिधित्व देकर NDA गठबंधन अपना सामाजिक समीकरण मज़बूत करना चाहता है।