रामनवमी पर 30 साल बाद अनंतनाग के उमा भगवती मंदिर में गूंजे भजन, हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल

जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग ज़िले में स्थित उमा भगवती मंदिर में इस वर्ष का रामनवमी उत्सव ऐतिहासिक बन गया। यह आयोजन लगभग 30 वर्षों के बाद हुआ, जिसमें हिंदू और मुस्लिम समुदायों की भागीदारी ने सांप्रदायिक सौहार्द और सामाजिक एकता का संदेश दिया।

Apr 7, 2025 - 07:11
रामनवमी पर 30 साल बाद अनंतनाग के उमा भगवती मंदिर में गूंजे भजन, हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल
रामनवमी पर 30 साल बाद अनंतनाग के उमा भगवती मंदिर में गूंजे भजन, हिंदू-मुस्लिम एकता की मिसाल

अनंतनाग (जम्मू और कश्मीर) : जम्मू-कश्मीर के अनंतनाग ज़िले में स्थित उमा भगवती मंदिर में इस वर्ष का रामनवमी उत्सव ऐतिहासिक बन गया। यह आयोजन लगभग 30 वर्षों के बाद हुआ, जिसमें हिंदू और मुस्लिम समुदायों की भागीदारी ने सांप्रदायिक सौहार्द और सामाजिक एकता का संदेश दिया।

मंदिर प्रमुख ने साझा की भावनात्मक यादें

मंदिर समिति के अध्यक्ष याजिन भट्ट ने कहा, "मैंने अपना बचपन यहां 12-13 साल बिताया है। उसके बाद देशभर की यात्रा की और अब एक प्रवासी जीवन जी रहा हूं। इतने वर्षों बाद इस मंदिर में रामनवमी मनाना मेरे लिए एक भावनात्मक क्षण है।"

उन्होंने इस प्रतीक्षा को भगवान राम के 14 वर्षों के वनवास से तुलना करते हुए कहा, "हम जैसे 35 साल के वनवास में थे, अब पुनर्वास की ओर बढ़ रहे हैं।"

नई पीढ़ी का रुख और सांप्रदायिक समझ

भट्ट ने कहा, "कुछ रिपोर्टों में दावा किया गया कि युवा हिंदू कश्मीर लौटना नहीं चाहते और मुस्लिम समुदाय भी इसके पक्ष में नहीं है। लेकिन यहां की सच्चाई इससे बिल्कुल अलग है।"
उन्होंने कहा कि लोग अपनी जड़ों की ओर लौटने लगे हैं, जो उनकी पहचान और आत्मिक यात्रा का हिस्सा है।

कश्मीर की विरासत से जुड़ने का संदेश

भट्ट ने चिनार, अखरोट और 300 साल पुराने पेड़ों का उदाहरण देते हुए कहा, "गमले में लगाया पौधा कहीं भी रखा जा सकता है, लेकिन ये पेड़ कश्मीर की आत्मा हैं।"
उन्होंने कहा, "लोग अब समझ रहे हैं कि जड़ों से जुड़े रहना ही असली समृद्धि है।"

हिंदू-मुस्लिम एकता की सुंदर मिसाल

भट्ट ने मुस्लिम समुदाय के योगदान की प्रशंसा करते हुए कहा, "इस बार मुसलमान भाई भी उत्सव में शामिल हुए और दान भी किया।"
उन्होंने बताया कि समुदाय अब एक स्थायी कमरा बनवाने की योजना बना रहा है, जिससे 50-60 लोगों को रहने की बेहतर सुविधा मिल सके।

 कश्मीर में बदलता माहौल और उम्मीद की किरण

यह आयोजन सिर्फ एक त्योहार नहीं था, बल्कि यह संदेश था कि कश्मीर अब बदलाव की राह पर हैरामनवमी के बहाने लोगों ने अपनी संस्कृति और भाईचारे को पुनः जीवंत किया है।

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